Wednesday, September 8, 2010

वीरभद्र ने मिलाए शांता के सुर में सुर






पंचायती राज संस्थाओं के जन प्रतिनिधियों के लिए वेतन की पैरवी के लिए अब पूर्व मुख्यमंत्री एवं वर्तमान केंद्रीय इस्पात मंत्री वीरभद्र सिंह ने भी पूर्व मुख्यमंत्री एवं वर्तमान राज्यसभा सांसद शांता कुमार के सुर में सुर मिला दिए हैं।पंचायतीराज संस्थाओं को मजबूत करने के नाम पर पंचायतीराज संस्थाओं में चुन कर आने वाले जनप्रतिनिधियों की पैरवी को प्रदेश में पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव से जोड़ कर देखा जा रहा है। ऐसे में जबकि प्रदेश में होने वाले पंचायतीराज संस्थाओं के चुनाव को दो साल बाद प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव के सेमीफाइनल के तौर पर देखा जा रहा है, प्रदेश के दोनों राजनीतिक दलों के दिग्गजों के सुर मिलने शुरू हो गए हैं। अपने मंडी दौरे के दौरान केंद्रीय इस्पात मंत्री ने पंचायतीराज संस्थाओं के लिए आर्थिक आजादी की मांग कर जमीनी स्तर के कांग्रेस नेता होने का संकेत व संदेश दिया है।केंद्रीय इस्पात मंत्री को भी लगता है कि वर्तमान परिदृश्य में पंचायतीराज संस्थाओं में निर्वाचित होकर आने वाले जन प्रतिनिधियों की जिम्मेदारी बढ़ी है, लेकिन अपने काम के एवज में उनको नाममात्र का मानदेय मिल रहा है। उन्होंने भाजपा दिग्गज शांता कुमार की ओर से की जा रही पंचायतीराज संस्थाओं के प्रतिनिधियों के लिए वेतन की वकालत को सही ठहराते हुए कहा कि वह शांता कुमार की पैरवी का समर्थन करते हैं। उन्होंने माना कि मनरेगा जैसे राष्ट्रीय कार्यक्रम के लागू हो जाने पर अब पंचायती राज संस्थाओं के काम एकदम से बढ़ गए हैं।
वीरभद्र सिंह का मानना है कि पंचायतीराज संस्थाओं के चुनाव किसी भी राजनीतिक पार्टी के लिए अहम चुनाव होता है, लेकिन वह इस बात के हिमायती हैं कि पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव पार्टी सिंबल पर नहीं लड़े जाने चाहिए। उनका कहना है कि पंचायती स्तर पर प्रदेश में कांग्रेस बेहद मजबूत स्थिति है लेकिन इन चुनावों के लिए कांग्रेस अगर पूरी योजना बनाकर चुनाव लड़े तो सत्ता के सेमीफाइल में भाजपा की छुट्टी तय है। उनका कहना है कि होता यह आया है कि कांग्रेस के अपने ही कार्यकर्ता और पदाधिकारी आमने सामने आ जाते है, नतीजतन कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ता है।

Sunday, September 5, 2010

सांसद बनाम सरपंच





ग्राम स्वराज एक भारतीय कल्पना है, जिसमें गांव अपने निजी साधनों पर खड़े होते हैं और समर्थ बनते हैं। स्वालम्बन इसका मंत्र है और लोकतंत्र इसकी प्राणवायु। गांवों में जनशक्ति का समुचित उपयोग और सामुदायिक साधनों का सही इस्तेमाल यही ग्राम वराज्य का मूलमंत्र है। सदियों से हमारे गांव इसी मंत्र पर काम करते आ रहे हैं। सच्चे अर्थों में हम अपने आपको तभी लोकतांत्रिक राज्य कह सकते हैं जब जनता शासन-प्रशासन के कार्यों में अधिक से अधिक हाथ बंटाए और वह अपना दायित्व समझे। लोकतंत्र का यह स्वप्निल-स्वप्न तभी पूरा हो सकता है जब राजकाज में आम आदमी की हिस्सेदारी हो, उसकी भागीदारी हो। इस स्वप्न को साकार करने का एकमात्र तरीका है पंचायती राज। वो पंचायते ही हैं जो भारत को लोकतांत्रित पहचान देती हैं। भारत में पंचायती राज का इतिहास अत्याधिक पुराना है और इसकी जड़ें हड़प्पा सभ्यता से लेकर वैदिक काल तक में देखी जा सकती हैं। सुखद आश्चर्य की बात है कि प्राचीन भारत में भी स्थानीय शासन दो वर्गों में विभाजित था-ग्रामिण और नगरीय स्थानीय प्रशासन। जब दुनिया सभ्य हो ही रही थी, उस समय वैदिक काल में ही हमारे यहां पंचायतें अस्तित्व में आ चुकी थीं। शायद यही कारण है कि प्राचीन भारत को ग्राम-पंचायतों के देश के रूप में भी प्रसिद्धि प्राप्त थी।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद -40 राज्यों को पंचायत गठन का निर्देश देता है। आजाद भारत का यह पहला कदम था जिससे पंचायती राज ने अपनी यात्रा शुरू की। पंचायत राज को लेकर बलवंतराय मेहता समिति (1957), अशोक मेहता समिति(1977), डा. पीवीके राव समिति ( 1985) और एलएम सिंघवी समिति (1986) ने समय- समय पर महत्वपूर्ण सिफारिशें की थीं। इससे पंचायती राज को एक संवैधानिक मान्यता और स्वायत्तता भी मिली। इस रास्ते में नौकरशाही की अड़चनें और भ्रष्टाचार का संकट एक विकराल रूप में सामने है । 1993 में संविधान के 73 वें और 74 वें संशोधन के तहत पंचायत राज संस्था को संवैधानिक मान्यता प्रदान की गयी। इस व्यवस्था के तहत महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की गयी जो अब पचास प्रतिशत कर दी गयी है। इसी तरह केंद्रीय स्तर पर 27 मई, 2004 की तारीख एक महत्वपूर्ण दिन साबित हुआ जब पंचायत राज मंत्रालय अस्तित्व में आया। इस समय देश में कुल पंचायतों में निर्वाचित प्रतिनिधियों की संख्या करीब 28.10 लाख है, जिसमें 36.87 प्रतिशत महिलाएं। पंचायत राज का यह चेहरा आश्वस्त करने वाला है। भारत सरकार ने 27 अगस्त, 2009 को पंचायती राज में महिलाओं का कोटा 33 से बढ़ाकर 50 प्रतिशत करने का जो फैसला लिया वह भी ऐतिहासिक है। इस प्रस्ताव को प्रभावी बनाने के लिए अनुच्छेद 243( डी) में संशोधन करना पड़ेगा।
चिंता की बात सिर्फ यह है कि यह सारा बदलाव भी भ्रष्टाचार की जड़ों पर चोट नहीं कर पा रहा है। सरकारें जनकल्याण और आम आदमी के कल्याण की बात तो करती हैं पर सही मायने में सरकार की विकास योजनाओं का लाभ लोगों तक नहीं पहुंच रहा है। आज का पंचायती राज विकास के धन की बंदरबाट से आगे नहीं बढ़ पा रहा है। कुछ प्रतिनिधि जरूर बेहतर प्रयोग कर रहे हैं तो कहीं महिलाओं ने भी अपने सार्थक शासन की छाप छोड़ी है किंतु यह प्रयोग कम ही दिखे हैं। जाहिर है कि पंचायतों में एसे लोग चुन कर ही नहीं आए रहे हैं जो गांव के लिए योजना बना सकें और गांव के विकास कार्यों का सही ढंग से क्रियान्वयन कर सकें। ऐसी कमी तभी पूरी हो सकती है जब पंचायती राज संस्थाओं में नेतृत्व देने की रूचि रखने वाले लोगों के लिए वेतन का प्रावधान हो। यह अनूठी पहल न केवल शिक्षित युवाओं को पंचायती राज संस्थाओं में चुनाव के प्रति उत्साहित करेगी, वहीं ग्रामीण स्तर पर लोकतंत्र की जड़ें मजबूत होंगी। हिमाचल प्रदेश की धरती से शुरू हुई लोकतंत्र की जड़ें मजबूत करने की यह मुहिम रंग लाती र्है, तभी सही मायनों में ग्राम स्वराज की अवधारणा फलीभूत होगी।

लवण ठाकुर
संयोजक आरटीआई ब्यूरो मंडी।
941203940

Friday, September 3, 2010

हिमुडा के ठेंगे पर मंडी डीसी के ऑर्डर

नगर परिषद में भी जरूरी नहीं उपायुक्त के आदेशों का पालन करना
हिमुडा की ओर से बनाए जा रहे रास्ते के चलते निकले मलबे से तबाही
रेडक्रास भवन की दीवारें दरकी, सेवा सदन भवन में रखा सामान बर्बाद


जीं हां। यहां हिमुडा के अफसर डीसी के ऑर्डर नहीं मानते। इतना ही नहीं यहां डीसी के ऑर्डर नगर परिषद के अधिकरियों के भी ठेंगे पर हैं। दरअसल पिछले साल जिला रेड क्रॉस भवन के पीछे हिमुडा की ओर से रास्ते का निर्माण किया गया। इस निर्माण के चलते निकले मलबे और पत्थरों को गेर कानूनी ढंग से जिला रेडक्रॉस भवन के पीछे डंप कर दिया गया। रास्ते के निर्माण के चलते रेडक्रॉस भवन के पीछे रखे गए मलबे से संभावित खतरे को देखते हुए डीसी ऑफिस मंडी ने 10 सितंबर 2009 को रास्ते का निर्माण करने वाली सरकारी एजेंसी हिमुडा और नगर परिषद मंडी के कार्यकारी अधिकारी को पत्र लिख कर इस मलबे को तुरंत हटाने के आइदेश दिए लेकिन न तो हिमुडा ने डीसी के आदेशों को पालन करना जरूरी समझा और न ही नगर परिषद की ओर से इस पर कोई एक्शन हुआ। इस पर 11 जनवरी 2010 को एक बार फिर से डी मंडी की ओर से हिमुडा और नगर परिषद को मलबा हटाने के लिए कड़ा पत्र लिख कर मलबे को हटाने के आदेश दिए। अपने पत्र में उपायुक्त की ओर से हिमुडा के अधिशाषी अभियंता को व्यक्तिगत तौर पर हस्तक्षेप करने को कहा गया। पर दोनों विभागों के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। बरसात के मौसम के मध्येनजर एक बार फिर से डीसी ऑफिस मंडी की ओर से 7 जुलाई 2010 को एक बार फिर से हिमुडा और नगर परिषद को कड़ा पत्र लिखा और मलबे और पत्थर को हटाने के लिए कड़ा नोटिस जारी किया गया, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा।

जिसका डर था वही हुआ

जिस आशंका को लेकर डीसी ऑफिस मंडी की ओर से बार-बार हिमुडा और नगर परिषद को पत्र लिखे गए थे, आखिर वही हुआ। 11 अगस्त को हुई भारी बरसात के कारण जिला रेडक्रॉस भवन के पीछे रखा सारा मलबा और पत्थर रेडक्रॉस भवन के कमरों में घुस गया और सेवा सदन भवन में घुस गए। भारी भरकम मलबे के चलते भवन की दीवारें दरक गई हैं और कमरों में रखा सामान खराब हो गया। आलम यह है कि यह भवन कभी भी गिर सकता है। भवन के संवदनशील होने के कारण यहां गरीब तीमारदारों को मिलने वाली ठहरने की सस्ती सुविधा भी छिन गई है। शर्मनाक यह है कि 12 अगस्त को डीसी मंडी की ओर से एक इस बारे में हिमुडा और नगर परिषद मंडी को मलबा हटाने के लिए कड़ा लेटर लिखा, लेकिन हैरानी इस बात की है कि तीन सप्ताह बीत जाने के बाद भी मलबा हटाने को लेकर कोई कदम नहीं उठाया गया है।

भाजपा नेत्री के लिए मेहरबानी

हिमुडा की ओर से बनाए गए इस रास्ते को लेकर कई सवाल उठे हें। आरोप है कि भाजपा की एक खासमखास नेत्री पर खास मेहरबानी के चलते नियमों को ताक पर रख कर यहां मोटर योग्य रास्ते का निर्माण कर यहां स्थित नाले का बहाव बदल डाला और रास्ते के निर्माण के दौरान निकले मलबे और पत्थरों को रेडक्रॉस भवन के पीछे रख दिया जो बड़े नुक्सान का कारण बना। भस्खन की दृष्टि से बिना प्लानिंग के हुए इस निर्माण से स्थिति और संवेदनशील हो गई है। गौरतलब है कि 18 साल पहले इस भवन के साथ लगते पुराने सीएमओ रेजिडेंस में उस वक्त के सीएमओ डॉक्टर बतरा के बेटे मलबे की चपेट में आकर काल का शिकार हो गए थे। इसके बाद बरसात के मौसम में इसी नाले के वेग में आकर दो परिवारों के सदस्य काल का ग्रास बन गए थे।

हिमुडा की ओर से करवाए गए निर्माण के कारण निकले मलबे के कारण भवन को भारी नुक्सान हुआ है। रेडकॉस के अध्यक्ष एवं डीसी मंडी की ओर से इस बारे में हिमुडा और नगर परिषद मंडी को नोटिस जारी किया गया है।
ओपी भाटिया, सचिव जिला रेडक्रॉस सोसायटी मंडी।

छह नहीं तीन मंजिल का होगा मंडी बस स्टैंड

सिविक सोसायटी के दबाव पर झुके परिवहन मंत्री, वापस लेना पड़ा अपना फैसला
बस स्टैंड की रिवाइज ड्रांईग व डिजायन मंडी पहुंचे, निर्माण का काम फिर शुरू
पहली दो मंजिलों पर बनेगा बस अड्डा , तीसरी मंजिल पर कमर्शियल कांप्लेक्स
मंडी
मंडी में निर्माणाधीन बस स्टैंड अब छह मंजिल का नहींं बल्कि तीन मंजिल का होगा। नीचे की दो मंजिलों पर बस अड्डा होगा जबकि तीसरी मंजिल पर कमर्शियल तौर पर प्रयोग की जाएगी। बस स्टैंड का निर्माण कार्य फिर से शुरू करने के लिए निर्माण संबंधी रिवाईज ड्राईंग और डिजायन हिमुडा के मंडी कार्यालय में पहुंच गए हैं। हिमुडा के अधिकरियों का कहना है कि जल्द ही मंडी बस अड्डे का निर्माण कार्य फिर से शुरू किया जा रहा है। मंडी सिटीजन कांउसिल और आरटीआई ब्यूरो मंडी ने इसे लोगों की जीत करार दिया है। दरअसल सिविक सोसायटी के दबाव के चलते परिवहन मंत्री महेंद्र सिंह को अपना फैसला वापस लेना पड़ा है। मंडी बस स्टैंड को लेकर परिवहन मंत्री महेंद्र सिंह विवादों में घिर गए थे। महेंद्र सिंह ने यह घोषणा की थी कि मंडी का बस स्टैंड छह मंजिल का बनेगा। उन्होंने यहां 245 दुकानें बनाने की बात भी कही थी। मंत्री पर आरोप थे कि वह बस स्टैंड की जगह शॉपिंग कांप्लेक्स बना रहे हैं। स्थानीय विधायक अनिल शर्मा के विरोध के बाद मंडी के सामाजिक संगठनों ने परिवहन मंत्री के इस फैसले का कड़ा विरोध किया था। सूचना अधिकार कानून के तहत मंडी की संस्थाओं ने बस स्टैंड का इंस्पेक्शन किया था और निर्माणाधीन बस स्टैंड पर कई जन सुविधाओं का प्रावधान न होने पर इसकी शिकायत मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल से की थी। मुख्यमंत्री ने इस की जांच करवाने के लिए प्रदेश की मुख्य सचिव को आदेश दिए थे। वन विभाग और नगर नियोजन विभाग की आपत्तियों के बाद के बाद बस स्टैंड रोक दिया गया था। हिमुडा मंडी जोन के अधिक्षण अभियंता राकेश शर्मा का कहना है कि मंडी बस स्टैंड की रिवाइज ड्राईंग मंडी हिमुडा कार्यालय पहुंच गई है। मंडी बस स्टैंड का दोबारा काम शुरू किया जा रहा है। रिवाईज ड्रांईग के मुताबिक बस अड्डे की तीन मंजिलें होंगी और इस के लिए 14 करोड़ का प्रावधान है। मंडी सिटीजन कांउसिल के अध्यक्ष वाईएन वैद्य कहते हैं कि यह आम जनता की जीत है। सरकार को काम वैसा ही करना होगा, जैसी जनता चाहेगी। मंडी बस स्टेंड के लिए मुख्यमंत्री के हस्तक्षेप पर हुए फैसले का स्वागत है। सरकार ने जनता की भावनाओं की कद्र की है। लवण ठाकुर ने सकरार के इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा है कि सरकार का यह फैसला जनभावनाओं की कद्र करने वाला है।

अब 25 नहीं 14 करोड़ का प्रावधान

परिवहन मंत्री महेंद्र सिंह ने कहा था कि मंडी के बस स्टैंड के निर्माण पर 14 करोड़ नहीं 25 करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं। निर्माण को लेकर हुए विवाद के बाद जब बस अड्डे के निर्माण के लिए रिवाइज डिजायन और ड्राइंग मंडी पहुंच गए है तो बताया जा रहा है कि अब मंडी बस स्टैंड के निर्माण पर 25 करोड़ नहीं बल्कि 14 करोड़ रूपए खर्च किए जाएंगे। हिमुडा के मंडी जोन के अधीक्षण अभियंता राकेश शर्मा ने बताया कि रिवाइज ड्राईंग के अनुसार बस अडडे के लिए तीन मंजिलों का ही प्रावधान है और इसके लिए 14 करोड़ का प्रावधान किया गया है।