Tuesday, August 31, 2010

Salary for Panchayat Pradhan: A letter to Hon'ble President of India.


To,
The Hon,ble President of India,
New Delhi
Subject: Why not a Salary hike for Panchayat Members? – Strengthening the Panchayati Raj and Local bodies’ institution.
Dear Madam,
Member of Parliament Sh.Lalu Yadav appears reasonable when he says that MPs should be paid one rupee more that the Cabinet Secretary. While he is going by the government protocol on hierarchy to justify his demand, this logic can be extended up to the grass root public representatives at Panchayat and ward level, for which there is a greater need if democracy is to be further strengthened in this country.
While the Himachal Pradesh government too has been quick to increase pension benefits of former MLAs. I firmly believe that the local bodies’ Members (Panchayat members and member to municipal bodies) too should also be suitably paid, at least at par with the Panchayat Secretaries of Panchayats and Executive Officers of Municipal bodies.
In the present day scenario, each Panchayat is spending between Rs 70 lakh to Rs 15 crore in one year under NREGA and various other schemes. The Pradhan and the elected members are the agencies which are totally involved in planning, supervising, and executing the works in their respective area. The Pradhan is supposed to be on job every time. He has visitors to meet him; he himself has to visit various offices and to attend various government programmes being performed/ executed in his Panchayat; He is to hold courts to resolve disputes and so on. His duties are endless. But we pay almost nothing to him. This situation should change.
Being a public figure, he or she needs to entertain people who come to meet them. Take for example a simple necessity of offering a cup of tea to anyone who visits a Pradhan. I am sure a Pradhan is not paid a monthly salary enough to support even 10 cups of tea every day. And if he is not courteous, he fears losing goodwill, so looking for alternative means of funding the hospitality is natural.

Paying Panchayat functionaries will give some relief and economic freedom and will surely give some edge over his secretaries and other officials working in his area, like Patwari, Forest guard, teachers etc. I am convinced this act may well help in curbing the deep-rooted corruption in rural development as even people with professional abilities may opt for grassroots politics. As of today, only unemployed educated not very intelligent opt to contest the Panchyat election.
A recent survey by a government agency highlighting that around 80% of Pradhans in the state indulge in corruption, should be reason enough to work out accountability measures, for which settling of salary of the Panches, pradhans and other functionaries of Panchayat Raj can be the first step.
If the institution of Panchayati Raj is to be strengthened, there is need to infuse confidence and sense of duty among people who participate in grassroots democracy. And this confidence will come only when the government shows confidence in the institution, which in turn is possible if Panchayat functionaries get the freedom to work without distractions.
RTI Bureau proposes a one day seminar on this issue. Engaging all the stake holders on this issue; the Panchyat Members, Panchyat Samiti Members, Zila Parishad Members, Members of Nagar Panchyats, Members of Municipal councils/ Corporations, Officials of the Panchyats and Block level and the official of the Municipal Councils/ Corporations, etc.
We seek your participation in this seminar, Madam
Yours truly,
Lawan Thakur, (Cell 94182-03940)
Member RTI Bureau,
88/6, Samkheter, Mandi (HP) 175001 Dates are yet to be fixed.

सरपंचों की वकालत करेंगे शांता




सांसदों के वेतन बढ़ोतरी के बाद पंचायत प्रधानों को वेतन देने की कवायद
राष्ट्रपति को भेजा ज्ञापन, होगी ग्रासरूट संस्थाओं को मजबूत करने की पहल
विनोद भावुक, मंडी
ऐसे में जबकि नरेगा जैसे कार्यक्रम के बाद प्रत्येक पंचायत में हर साल औसतन 70 लाख से 15 करोड़ तक की राशि विकास कार्यों पर खर्च हो रही है। पंचायतों में करोड़ों के विकास कायो्रं के कियान्वयन में पंचायती राज संस्थाओं के प्रतिनिधियों की अहम भूमिका है लेकिन इसकी एवज में इस प्रतिनिधियों को नाममात्र का मानदेय दिया जा रहा है। ऐसे में पंचायती राज संस्थाएं भ्रष्टाचार की दलदल में डूब रही हैं। एक सर्वे के मुताबिक प्रदेश की अस्सी प्रतिशत पंचायतों में भ्रष्टाचार व्याप्त है। अगर पंचायती राज संस्थाओं और शहरी निकाओं के जनप्रतिनिधियों को सम्मानजक वेतन मिलता है तो न केवल इस संस्थाओं में फैले भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा, बल्कि जमीनी स्तर पर योग्य प्रतिनिधि चुन कर आएंगे। दपंचायती राज संस्थाओं और शहरी निकाओं के जन प्रतिनिधियों के लिए वेतन की वकालत के लिए भाजपा के दिज्गज नेता शांता कुमार पहल करेंगे। इस सिलसिले में जल्द ही मंडी में सामाजिक संस्थाओुं की ओर से आयोजित एक सेमीनार का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शांता कुमार भाग लेंगे।
, वर्तमान परिदृश्य :
वर्तमान समय में एक पंचायत एक वित्त वर्ष में मनरेगा और अन्य स्कीमों के तहत औसतन 70 लाख से 15 करोड़ तक खर्च कर रही है। प्रधान और अन्य चुने हुए प्रतिनिधि अपने क्षेत्र में विकास की योजनाएं बनाने, विकास कार्यों के निरीक्षण और कार्य निष्पादन के लिए अहम एजेंसी है। प्रधान का काम तो ऐसा है कि उसे हर समय अपने कर्तव्य के लिए तत्पर रहना पड़ता है। प्रधानों के पास अपने विभिन्न तरह के कामों से संबंधित मिलने वालों का तांता लगा रहता है और उसे खुद भी विभिन्न सरकारी कार्यक्रमों और सरकारी कार्यालयों में जाना पड़ता है। यहां तक कि विभिन्न विवादों के निपटारन के लिए उसे न्यायिक शक्तियां तक प्रदान की गई हैं। इन सव की ऐवज में उसे न के बराबर मानदेय दिया जा रहा है। ग्रामीण स्तर पर स्वस्थ लोकतंत्र के विकास के लिए इस स्थिति को बदलना जरूरी है।
कम मानदेय भ्रष्टाचार का कारण :
पंचायती राज संस्थाओं और स्थानीय निकायों में भ्रष्टाचार का बोलबाला है। एक सरकारी एजेंसी के सर्वेक्षण के अनुसार प्रदेश की 80 प्रतिशत पंचायतें भ्रष्टाचार में डूबी हुई हैं। इस भ्रष्टाचार के पीछे की वजह साफ है। प्रदेश में प्रधानों को जो मानदेय सरकार की ओर से दिया जा रहा है उससे कोई भी प्रधान अपने मिलने वालों को रोजाना दस कप चाय तक नहीं पिला सकता है। दूसरी ओर अगर प्रधान अपने मिलने वालों को चाय का एक कप भी ऑफर नहीं कर सकता है तो उसे अपने रुतबे के जाने का डर रहता है। ऐसे में प्रधानों को अपने खर्चों के लिए वैकाल्पिक व्यवस्था बनानी पड़ती हे। यहीं से भ्रष्टाचार की शुरूआत होती है।
वेतन से मिलेंगे योग्य प्रधान
अगर पंचायती राज संस्थाओं और शहरी निकायों के प्रतिििनधयों को सम्मानजनक वेतन मिलता है तो योगय और शिक्षित उम्मीदवार इस संस्थाओं के चुनावों में बढ़ चढ़ कर भाग लेंगे और इस स्थिति में योग्य, शिक्षित और युवा प्रतिनिधि चुन कर पहुंचेगे। ऐसे में पंचायती राज संस्थाओं और शहरी निकाओं में सेवारत अधिकारियों व कर्मचारियों के ऊपर प्रतिनिधियों का दबाव बनेगा। ऐसे में इस संसथाओं में गहरे तक घर कर चुके भ्रष्टाचार को समाप्त किया जा सकेगा। अगर इस संस्थाओं को सदृढ़ करना है तो इस संस्थाओं में चुन कर आने वाले जन प्रतिनिधियों को आर्थिक राहत देना जरूरी है।

बिना डिमार्केशन के लग रही 38 लाख की बाउंडरी वाल

धर्मपुर में फ्लड जोन में बस अड्डे का निर्माण करने वाली हिमुडा का नया कारनामा
संबंधित मंत्री के अपने घर में अपने विभाग ने फिर किया सरकार को शर्मसार
दीवार को लेकर कॉलेज प्रबंधन और एसडीएम सरकाघाट पर भी उठी अंगुलियां

प्रदेश के शहरी विकास मंत्रालय के अधीन काम करने वाली सरकारी एजेंसी हिमुडा सरेआम प्रदेश सरकार के नियमों को ठेंगा दिखा रही है। हिमुडा की ओर से करवाए जा रहे एक के बाद एक काम को लेकर उठ रहे विवादों से प्रदेश सरकार की खूब किरकिरी हो रही है। ताजा विवाद यह है कि हिमुडा की ओर से अपने ही विभाग के मंत्री के गृह क्षेत्र में किए जाए निर्माण में निमयों की जम कर धज्जियां उड़ाई गई हैं। मंडी में बिना नक्शे से 15 करोड़ के बस अड्डे और धर्मपुर में फ्लड जोन में साढ़े तीन करोड़ के बस अड्डे के निर्माण को लेकर विवादों में घिरी सरकारी एजेंसी हिमुडा का एक नया कारनामा सामने आ गया है। अब सरकाघाट कॉलेज परिसर के चारों और लगाई जा रही बाउंडरी वाल को लेकर हिमुडा की कार्यप्रणाली पर सवाल उठे हैं। कॉलेज परिसर के चारों और 38 लाख की लागत से बाउंडरी वाल का निर्माण करवाया जा रहा है। हैरानी इस बात को लेकर है कि हिमुडा ने डिमार्केशन करवाए बिना ही यहां मनमर्जी से काम शुरू कर दिया। बताया जाता है कि कॉलेज की जमीन को गैर कानूनी ढंग से कब्जाए कुछ विशेष लोगों को लाभ देने के लिए हिमुडा ने कॉलेज की जमीन की निशानदेही करवाए बिना ही आनन फानन में निर्माण कार्य शुरू कर दिया। गैर कानूनी ढंग से शुरू हुए इस निर्माण को लेकर जहां एसडीएम सदर की कार्यप्रणाली पर अंगुलियां उठी हैं, वहीं स्थानीय काग्रेस के प्रिंसीपल की भूमिका भी संदेहास्पद है। बाउंडरी वाल का अस्सी प्रतिशत काम पूरा होने के बाद हिमुडा, शिक्षा विभाग और स्थानीय प्रशासन एक बार फिर से कटघरे में है। स्टेट आरटीआई ब्यूरो मंडी के संयोजक लवण ठाकुर की ओर से इस बारे में सूचना अधिकर कानून के तहत जब सूचना मांगी तो इस प्रकरण का पर्दाफाश हो गया। अब तीनों विभाग अपनी अपनी खाल बचाने के लिए बिना डिमार्केशन के बाउंडरी वाल लगाने के प्रकरण का दोष एक दूसरे के सिर मढ़ कर जवाबदेही से बच रहे हैं। सरकाघाट कालेज के प्रिसीपल आरसी शर्मा का कहना है कि हमने बाउंडरी वाल का काम शुरू करने से पहले डिमार्केशन लेने का एसडीएम ऑफिस को लिखा था। इस बारे चार बार पत्राचार और दो बार खुद मिलने के बावजूद एसडीएम ऑफिस ने निशानदेही नहीं करवाई। उधर इस बारे मेें दसरकाघाट स्थित हिमुडा के एसडीओ कुशाल शर्मा कहते हैं कि डिमार्केशन के लिए अप्लाई किया हुआ है और क्बांइड इंस्पेक्शन जिसमें कॉलेज प्रशासन भी शामिल था, के बाद ही बाउंडरी वाल का निर्माण कार्य शुरू करवाया। एसडीएम सरकाघाट विजय शर्मा इस मुद्दे पर कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हैं।

एसडीएम ऑफिस कानों पर जूं नहीं रेंगी

सरकाघाट कॉलेज परिसर में बिना डिमार्केशन के बाउंडरी वाल लगाने के मामले में एसडीएम सरकाघाट की लापरवाही साफ झलक रही है। निर्माण शुरू करने से पहले कॉलेज की जमीन की डिमार्केशन के लिए कॉलेज प्रिंसिपल की ओर से 20 फरवरी 2010, 5 मार्च 2010, 11जून 2010 व 24 अगस्त 2010 को पत्र लिखे गए लेकिन एसडीएम कार्यालय की ओर से इस सारे पत्रों को नजरअंदाज कर दिया गया। कॉलेज प्रशासन इस बारे में कई बार मंडल प्रशासन से मिला लेकिन एसडीएम ऑफिस सरकाघाट ने कॉलेज परिसर के नाम जमीन की डिमार्केशन करवाने में कोई रूचि नहीं दिखाई।

हिमुडा का दादागिरी फिर बरकरार

जमीन की डिमार्केशन होने पर ही हिमुडा ने यहां बाउंडरी वाल का काम शुरू करना था लेकिन जल्दबाजी देखिए कि बिना कागजी औपचारिताएं पूरी किए ही हिमुडा ने काम का आबंटन कर दिया। हालांकि इस बीच कॉलेज प्रिंसीपल की ओर डिर्मोशन के लिए हिमुडा के साथ पत्र व्यवहार होता रहा लेकिन दूसरी और काम चलता रहा और हिमुडा के अधिकारियों ने प्रिंसीपल के पत्रों को नजरअंदाज कर दिया। कॉलेज प्रिंसीपल ने 24 अगस्त2010 को एक बार इस बारे में हिमुडा के सरकाघाट स्थित एसडीओ को पत्र लिखा।

है किसी में दम जो हिला सके अंगद के पांव

सरकाघाट एसडीएम ऑफिस में दशकों ने नहीं हुआ कोई तबादला
सरकार के तबादला नियमों को उड़ रहा है सरेआम मजाक
सियासी रसूख के चलते मारी कुंडली, आम लोगों के काम को नहीं तरजीह
यहां स्थिति बिल्कुल अंगद के पांव की तरह है। किसी में दम नहीं दिखता कि अंगद के पांव को हिला सके। बात मंडी के सरकाघाट स्थित एसडीएम ऑफिस की हो रही है। प्रदेश में सरकार आती हें जाती है, लेकिन सरकाघाट एसडीएम ऑफिस के स्टाफ पर सरकारों के आने जाने का कोई फर्क नहीं पड़ता, वर्ना कोई वजह नहीं दिखती कि दशकों से एक ही ऑफिस में जम कर यहां के अधिकारी कर्मचारी सरकार की तबादला नीति के मुंह पर तमाचा रसीद नहीं करते। यहां आलम यह है कि ऑफिस में मौजूद 17 कर्मचारियों में से 9 कर्मचारी यहां दशकों से यहां डेरा जमाए हुए हैं। कोई 26 साल से एक जगह तैनात है तो कोई 18 वर्षों से कुंडली मारे हुए बैठा है। यह भी कम हैरतअंगेज नहीं है कि यहां मौूजद कुछ कर्मचारियों की शिकायतें मुख्यमंत्री कार्यालय तक भी पहुंची हैं लेकिन सियासी रसूख के बलबूते यहां डटे कर्मचारियों का कोई बाल भी बांका नहीं हुआ। उलटा सरकाघाट एसडीएम ऑफिस के विवादों की सुर्खियां और बढऩे लगी है। सरकाघाट एसडीएम ऑफिस में कौन कर्मचारी कब से डटा हुआ है, इस बात का खुलासा तब हुआ जब एडवोकेट संतोष कुमार ने सूचना अधिकार कानून के तहत एसडीएम ऑफिस ने इस बारे में जानकारी हासिल की।
कौन कब से डटा
नाम पद समय
प्रकाश चंद जूनियर एसिस्टेंट 7 साल
कमलेश कुमार जूनियर एसिस्टेंट 11 साल
रोबू देवी जूनियर एसिस्टेंट 18 साल
सुनील कुमार जूनियर एसिस्टेंट 6 साल
नथू राम कानूनगो 9 साल
मलगर राम पियुन 26 साल
रोशन लाल पियुन 9 साल
बीना देवी पियुन 12 साल
प्रीतम चंद चौकीदार 14 साल
साहब पर भी विवाद
एक तरफ जहां एसडीएम ऑफिस सरकाघाट के कर्मचारियों को मिली तबादलों से छूट के चलते विवाद हे वहीं सरकाघाट के एसडीएम खुद विवादों में घिरे हुए हैं। भ्रष्टाचार के कई संगीन आरोपों को लेकर उनके खिलाफ सतर्कता विभाग तक शिकायतों का लंबा सिलसिला है। बीतें दिनों सरकाघाट में सरकारी दुकान आबंटन को लेकर भी वह विवादों का सामना कर चुके हैं। बाबा कमलाहिया मंदिर परिसर में हुई खुदाई के चलते मंदिर को हुए नुक्सान का विवाद भी उनके साथ जुड़ गया है। एडवोकेट संतोष कुमार का कहना है कि एसडीएम ऑफिस सरकाघाट से प्राप्त सूचना के अनुसार 17 कर्मचारियों में 9 कर्मचारी ऐसे हैं जो 26 साल से 18 साल तक के अंतराल में यहां डटे हुए हैं। ऐसे में सरकार की तबादला नीति क्या है, इसका अंदाजा खुद लगाया जा सकता है।

Thursday, August 26, 2010

एक कमरे में दूध मुंहे बच्चों के साथ पढऩे हैं स्कूली छात्र

आंगनबाड़ी केंद्र पुतली फाल्ड में गड़बड़झाला
धर्मपुर की टौर जाजर पंचायत के पुतली फाल्ड बार्ड में अनूठा स्कूल खुला है जिस में पैदा होते बच्चों के साथ- जमा दो में पढऩे वाले बच्चे एक ही कमरेे में शिक्षा पा रहे हैं। यही नहीं जमा दो के बच्चों के साथ-साथ दूध मुंहे बच्चे पेट भर पोषाहार का आनंद भी लेते हैं। हैरान मत होईए, ऐसा फर्जीवाड़ा सिर्फ पंचायत में एक आंगनबाड़ी केंद्र को संचालित करने के लिए किया गया है। आंगनबाड़ी केंद्र पंचायत के सदस्य के घर में खुला है और इस केंद्र की संचालिका वार्ड पंच महोदय की धर्मपत्नी हैं।
टोर जाजर पंचायत के इस आंगनबाड़ी केंद्र का जन्म ही अजब परिस्थितियों में हुआ है। 2007 से चल रहे इस केंद्र के सही ढंग से संचालन के लिए एक कमेटी का गठन 3 जनवरी 2008 को किया गया दर्शाया गया है लेकिन प्रधान महोदय ने इस समिति के अध्यक्ष के नाते मोहर 11 जनवरी 2008 को लगाई। बैक डेट में गठित इस संचालन समिति में सदस्यों की उपस्थिति भी फर्जी तौर पर दर्शाई जाती है। समिति में शामिल लोग यशवंत सिंह पुत्र बलिया राम, चंपा देवी पत्नी प्रेम सिंह, रूमा देवी पत्नी बालम राम, मनसा देवी पत्नी चेत राम, बबली देवी पत्नी काली दास, लज्जा देवी पत्नी जगदीश चंद व महिला मंडल प्रधान कमली देवी महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना में भी काम करते हैं और संचालन समिति की उसी दिन होने वाली बैठक में भी उपस्थित रहते हैं जिस से इस में फर्जीवाड़े की आशंका बलवती हो रही है। यही नहीं आंगनबाड़ी केंद्र पुतली फाल्ड में संख्या बढ़ाने के लिए ऐसी किशोरियों के नाम भी डाले गए हैं जो जमा एक व दो की कक्षाओं में पढ़ रही हैं। सीमा देवी पुत्री शाली राम, पूजा देवी पुत्री चमारू राम, कला देवी पुत्री चमारू राम, रविना देवी प्रेम सिंह, वीणा देवी पुत्री चेत राम, लीला देवी पुत्री चेत राम स्कूल भी पढऩे जाती हैं और आंगनबाड़ी केंद्र में बाकायदा उन के नाम का राशन भी आता है। मजेदार बात यह है कि इस केंद्र में कोइ्र्र छुट्टी ही नहीं होती। सरकारी छुट्टियों, रविवार, गांधी जयंती, शिवरात्रि व बैसाखी आदि त्यौहारों में यह केंद्र खुला दर्शाया गया है और इन दिनों का राशन भी जारी हुआ। बताते हैं जब पुतली फाल्ड गांव का यह आंगनबाड़ी केंद्र खुलने लगा तो पुतली फाल्ड बार्ड के आधे बच्चों को किसी और वार्ड में पंचायत ने इस लिए दर्शा दिया गया कि इस केंद्र को पंचायत के सदस्य के घर में खोला जा सके। ऐसा इस लिए किया गया कि केंद्र को वार्ड के दूसरे गांव में खोलने से रोका जा सके।
आंगनबाड़ी केंद्र में शाला पूर्व शिक्षा का प्रावधान भी है और इस में गांव के 3 से 6 साल की उम्र के बच्चों को शामिल किया जाता है लेकिन पुतली फाल्ड के इस गांव मे ऐसे भी बच्चे शाला पूर्व शिक्षा पा रहे हैं जिनकी उम्र अभी दो साल भी नहीं हुई है। दूध मुंहे बच्चों से ले कर दो साल से कम उम्र के ऐसे आधा दर्जन से अधिक बच्चे हैं। आंगनबाड़ी के रिकार्ड में दर्ज आंचल पुत्री संजय कुमार, अनिकेत पुत्र सतीश कुमार, राहुल गुलेरिया पुत्र धनी राम, राहुल पुत्र राम लाल, आदित्य पुत्र सुरेंद्र कुमार व पीयूष पुत्र वसंत सिंह ऐसे नाम हैं जो बच्चे अभी मां की गोद में खेलते हैं और उन्होंने अभी अपना दूसरा जन्म दिन भी नहीं मनाया है। गांव के लोगों ने आंगनबाड़ी केंद्र में हो रही इस धांधली के बारे मेंं उपायुक्त मंडी सहित प्रदेश सरकार को भी अवगत करवाया है और इस आंगनबाड़ी केंद्र के संचालिका को हटा कर किए गए भ्रष्टाचार की भरपाई करने की मांग की है। जगदीश चंद पुत्र अर्जुन सिंह ने प्रदेश के मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल, सामाजिक न्याय एवं आधिकारिता मंत्री सरवीन चौधरी से न्याय की गुहार लगाई है। उधर इस सम्बंध में पूछने पर जिला कार्यक्रम अधिकारी पी धीमान ने पूछने पर कहा कि ग्रामीणों की शिकायत की उच्च स्तरीय जांच करवाई जाएगी और दोषी पाए जाने पर दोषियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई अमल में लाई जाएग

Monday, August 23, 2010

बाबा कमलाहिया की कमाई, एसडीएम ऑफिस ने उड़ाई


बाबा कमलाहिया की कमाई, एसडीएम ऑफिस ने उड़ाई
ऐतिहासिक मंदिर के चढ़ावे के लाखों की जम कर हुई बंदरबांट
मंदिर कमेटी अध्यक्ष की मनमर्जी से लोगों की आस्था से खिलवाड़

ऐतिहासिक बाला कमलाहिया मंदिर की कमाई से एसडीएम ऑफिस सरकाघाट मजे कर रहा है। मंदिर को चढ़ावे के रूप में होने वाली कमाई से जहां एसडीएम कार्यालय ने सुविधाएं जुटाई जा रही हैं, वहीं दान में मिले हुए पैसे को मनमर्जी से आगे दान भी दिया जा रहा है। सरकाघाट में होने वाली सरकारी बैठकों का बोझ जहां बाबा कमालाहिया के सिर पर है तो उपमंडल पर होने वाले स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस का बीड़ा भी पिछले लंबे अर्से से बाबा ही संभाल रहे हैं। कहीं खेलों बाबा के बलबूते हो रही हैं तो कहीं बाबा के पैसों से सरकारी साहब अपने लिए बैडशीट खरीद रहे हैं। कभी बाबा वीआइर्पी की रिफ्रेशमेंट का खर्च उठाते हैं तो कभी, कभी एसएचओ को गाड़ी उपलब्ध करवाते हैं। मंदिर के चढ़ावे को नियमों के विपरीत फूंकने का यह गोरखधंधा पिछले एक दशक से जारी है। हालांकि इस ऐतिहासिक मंदिर की कमेटी भी बनाई गई है लेकिन चढ़ावे के पैसे को खर्च करने के लिए मंदिर कमेटी के अध्यक्ष को कमेटी की परमिशन की जरूरत ही नहीं पड़ती। मंदिर के पैसे की लूटखसूट कर लोगों की आस्था से हो रहे खिलवाड़ का सारा काला चि_ा उस वक्त सामने आया जब आरटीआई ब्यूरों के सदस्य एडवोकेट भूपेंद्र भरमौरिया ने सूचना अध्किार कानून के तहत मंदिर के चढ़ाबे और खर्चे का ब्यौरा मांगा। खुलासा हुआ कि बाबा के नाम पर अफसरों ने मंदिर की कमाई की लूट मचा रखी है। कमलाहिया मंदिर में हो रहे भ्रष्टाचार की शिकायत विजिलैंस विभाग के पास पहुंच गई है। करीब अढ़ाई लाख के इस घोटाले के आरेापियों के खिलाफ जांच की मांग की गई है। भंडाफोड़ होने के बाद अधिकारी जुबान खोलने से कतरा रहे हैं और ठीकरा पूर्व के मंदिर अधिकारियों के सिर फोड़ा जला रहा है।

दान का दान, महा कल्याण

चढ़ावे की राशि को दिल खोल बांटा जा रहा है। मंदिर के पैसे से एसडीएम ऑफिस ने करीब पचास हजार का फर्निचर खरीद डाला और यहां तक की एसडीएम के सरकारी आवास की बेडश्ीट्स तक मंदिर के पैसों के खरीदी गई। 2005 में बीस सूत्रीय कार्याक्रम के दौरान बड़े अफसरों की रिफे्रेशमेंट के लिए भी हजारों मंदिर के चढ़ावे से खर्च किए गए। 2006 में एक शव का पोस्टमोर्टम करने के लिए गाड़ी भेजी गई तो गाड़ी का किराया भी मंदिर के चढ़ावे से अदा किया गया। इसी साल एसएचओ सरकाघाट के लिए टैक्सी का खर्च भी मंदिर के चढ़ावे से गया। इसके अलावा भी कई ऐसी जगह मंदिर का चढ़ावा खर्च किया गया जो किसी भी साधारण आदमी के गले नहीं उतरता।

बाबा ने दिया कोल्ड का प्रसाद

बड़े अफसरों के ठाठ बाट पूरे करने के लिए भी मंदिर के चढ़ावे को उड़ाया जा रहा है। वर्ष 2009 में बड़े अफसरों को फ्रूट उपलब्ध करवाने के लिए चढ़ावे का पैसा खर्च किया गया। 2007 में भी करीब तीन हजार रूपये अफसरों को कोल्ड ड्रिक्स , कॉफी और बिस्कुट खिलाने के लिए उड़ा दिए । पिछले एक दशक में एउसडीएम ऑफिस सरकाघाट के अधिकारी चढ़ावे की दस हजार की राशि से चायऔर ठंडा ही पी गए।
बाबा की कृपा से मिला लैपटॉप
2007 में एसडीएम सरकाघाट पर बाबा की असीम कृपा बरसी। बाबा के चढ़ावे के 28000 से साबहब के लिए लैपटॉप की व्यवस्था हो गई। इसी साहब को देश दुनिया ेस ऑन लाईन रखने के लिए बाबा ने बॉयरलैस ब्रॉडबैंड का भी प्रबंध करवा दिया। बता दें कि 2001 में सरकाघाट एसडीएम ऑफिस में दस हजार का टाईप राइ्रटर भी बाबा की बदौलत आया था। इतना ही नहीं ऑफिस प्रिटिंग का खर्चा भी कई बार बाबा के ही सिर डाला गया।

बाबा कमलाहिया मंदिर के चढ़ावे को डकारने के लिए जम कर भ्रष्टाचार हो रहा है। निमयों को ताक पर रख कर मंदिर के चढ़ावे की बंदबांट की जा रही है। इस बारे में विजिलेंस से तत्थों सहित शिकायत कर जांच की मांग की गई है।
एडवोकेट भूपेंद्र भरमौरिया, मंदिर में चल रहे भ्रष्टाचार को उजागर कर जिन्होंने विजिलैंस से जांच के लिए शिकायत की है।

Sunday, August 22, 2010

सरकार मेहरबान तो पात्र की जगह अपात्र विराजमान

मेहरबानी

सरकार मेहरबान तो पात्र की जगह अपात्र विराजमान
नियमों को तोड़ कर दी गई करूणामूलक अधार पर प्रथम श्रेणी की सरकारी नौकरी
कांग्रेस के कार्याकाल में हुई नियुक्ति पर उठे सवाल, उच्च न्यायालय में जाने की तैयारी
सरकार के खास लोगों के लिए प्रदेश में व्यवस्थाएं भी खास होती हैं। उस मामले में नियमों को तोडऩे के कोई कोर कसर नहीं रखी जाती जिस मामले की पेरवी खुद मुख्यमंत्री कर रहे हों। चिट्टों पर नियुक्तियां देने को लेकर विवादों में घिर चुके तत्कालीन कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री कार्यालय का एक ओर कारनामा सामने आया है जहां करूणामलक आधार पर नौकरी की बंदरबांट में आश्रित को न केवल प्रथम श्रेणी के पद पर नियुक्त कर दिया, बल्कि पद के लिए न्यूनतम सारी योग्यताओं को भी दरकिनार कर दिया गया। इस नियुक्ति पर प्रदेश सरकार की मुहर लगाने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री की सिफारिश पर मामले को केबिनेट में पास करवा दिया गया। अब सूचना अधिकार कानून के तहत इस प्रकरण का खुलासा आरटीआई ब्यूरो के सदस्य रणजीत चौहान ने किया है। आरटीआई ब्यूरो मंडी इस नियुक्ति को प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती देने जा रहा है। 9 फरवरी 2007 को जिला न्यायावादी सतर्कता शिमला के पद पर तैनात रविंद्र धोल्टा के निधन के बाद प्रदेश सरकार ने मृतक के पुत्र विकास धोल्टा को करूणामूलक आधार पर सहायक जिला न्यायावादी के पद पर नियुक्ति दे दी। आवेदक ने 5 मार्च 2009 को तत्कानील मुख्यमंत्री को करूणामलक आधार पर नौकरी के लिए आवेदन किया तथा मांग की कि उसने 8 माह पहले बीए एलएलबी पास की है तथा पिता की मृत्यु के बाद परिवार में वृद्व दादी, माता व छोटी बहन का भरण पोषण मुश्किल हो गया है। तत्कालीन मुख्यमंत्री के खासमखास रहे अधिकारी के पुत्र को एडजस्ट करने के लिए अभियोजन विभाग, गृह विभाग, वित्त विभाग तथा मुख्यमंत्री कार्यालय के अधिकारियों ने दिन रात एक कर इस फाईल को 13 सितंबर 2007 को केबिनेट से पास करवा लिया। हालांकि इसी तरह के करूणामूलक आधार पर नौकरी के हजारों आवेदन प्रदेश सरकार के कई विभागों में दशकों से धूल फांक रहे हैं। उधर रसूखदारों के लिए पिछले दरवाजे से अपात्र होते हुए भी एंट्री की पूरी व्यवस्था है।

यहां मेहरबानी, वहां परेशानी
इसी से मिलते एक अन्य मामले में किन्नौर में तैनात जिला न्यायावादी अमर प्रकाश शर्मा के 31 अक्तूबर 2006 को निधनहोने पर जब उनकी पुत्री कुमारी रोहनी शर्मा ने करूणामूलक आधार पर सहायक जिला न्यायावादी पद के लिए आवेदन किया तो अभियोजन विभाग ने आवेदन यह कहते हुए ठुकरा दिया कि करूणामूलक आधार पर तृतीय या चतुर्थ श्रेणी पर ही नियुक्त किया जा सकता है।
आपत्तियां

१. करूणामूलक आधार पर प्रदेश सरकार में नौकरी केवल तृतीय व चतुर्थ श्रेणी के पद पर दी जा सकती है लेकिन इस मामले मेें नौकरी प्रथम श्रेणी पद पर दी गई है।.
२. नौकरी देने के लिए 1990 में सरकार ने एक नीति निर्धारित की है जिसके आधार पर उसी आश्रित को नौकरी दी जा सकती है जिसके परिवार का कोई भी सदस्य सरकारी नौकरी पर न हो। इस मामले में आश्रित की माता पहले से सिंचाई एवं जन स्वास्थ्य विभाग में वरिष्ठ सहायक के पद पर तैनात थी।
३. सहायक जिला न्यायवादी के पद पर नियुक्ति के लिए अधिवक्ता को वकालत का न्यूनतम दो साल का अनुभव होना अनिवार्य है। इस मामले में आश्रित को जब नियुक्ति दी गई तब तक वह दो साल वकालत की शर्त को पूरा नहीं करता था।
४. जिस आश्रित को नौकरी दी गई उसके आय प्रमाणपत्र में उसके परिवार की आय 352000 सालाना दर्शाई गई है जो कि करूणामूलक आधार पर नौकरी की अनिवार्य आय की शर्त के कहीं अधिक है।
५. .अपनों को रेवडिय़ा बांटने की हद देखो कि इस नियुक्ति को बाद में केबिनेट से भी मंजूरी दिलबा दी गईऔर जब नियुक्ति दी गई तो विधानसभा चुनाव के चलते प्रदेश में आचार संहिता लागू थी। सरकार ने इस नियुक्ति के लिए चुनाव आयोग से भी पत्राचार कर मंजूरी हासिल कर ली।
६. नियुक्ति के लिए मुख्यमंत्री कार्यालय की तेजी भी हैरान करने वाली है। करूणामूलक आधार पर नौकरी के लिए आवेदक ने पहला आवेदन 5 मार्च 2007 को तथा दूसरा आवेदन 13.08. 2007 को सीधे मुख्यमंत्री के नाम तो भेजे लेकिन संबंधित विभाग को कोई आवेदन नहीं किया गया।
७. मुख्यमंत्री कार्यालय ने 13. 08. 2007 को गृह सचिव को टाईम बांड पत्र में इस मामले को 25 .08.2007 से पहले मुख्यमंत्री के पास पुट अप करने को कहा। 27 व 31 अगस्त 2007 को गृह सचिव को ऐसे ही पत्र मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से भेजे गए।
८. इसी तरह के एक अन्य मामले में एक जिला न्यायवादी की मृत्यु होने पर उसकी पुत्री रोहनी शर्मा ने करूणाूमल आधार पर सहायक जिला न्यायवादी के पद पर नियुक्ति के लिए आवेदन किया तो अभियोजन विभाग आवेदन को यह कहते हुए ठुकरा दिया कि करूणामलक आधार पर तृतीय व चतुर्थ श्रेणी के पद ही नियुक्ति मिल सकती है।