
पंचायती राज संस्थाओं के जन प्रतिनिधियों के लिए वेतन की पैरवी के लिए अब पूर्व मुख्यमंत्री एवं वर्तमान केंद्रीय इस्पात मंत्री वीरभद्र सिंह ने भी पूर्व मुख्यमंत्री एवं वर्तमान राज्यसभा सांसद शांता कुमार के सुर में सुर मिला दिए हैं।पंचायतीराज संस्थाओं को मजबूत करने के नाम पर पंचायतीराज संस्थाओं में चुन कर आने वाले जनप्रतिनिधियों की पैरवी को प्रदेश में पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव से जोड़ कर देखा जा रहा है। ऐसे में जबकि प्रदेश में होने वाले पंचायतीराज संस्थाओं के चुनाव को दो साल बाद प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव के सेमीफाइनल के तौर पर देखा जा रहा है, प्रदेश के दोनों राजनीतिक दलों के दिग्गजों के सुर मिलने शुरू हो गए हैं। अपने मंडी दौरे के दौरान केंद्रीय इस्पात मंत्री ने पंचायतीराज संस्थाओं के लिए आर्थिक आजादी की मांग कर जमीनी स्तर के कांग्रेस नेता होने का संकेत व संदेश दिया है।केंद्रीय इस्पात मंत्री को भी लगता है कि वर्तमान परिदृश्य में पंचायतीराज संस्थाओं में निर्वाचित होकर आने वाले जन प्रतिनिधियों की जिम्मेदारी बढ़ी है, लेकिन अपने काम के एवज में उनको नाममात्र का मानदेय मिल रहा है। उन्होंने भाजपा दिग्गज शांता कुमार की ओर से की जा रही पंचायतीराज संस्थाओं के प्रतिनिधियों के लिए वेतन की वकालत को सही ठहराते हुए कहा कि वह शांता कुमार की पैरवी का समर्थन करते हैं। उन्होंने माना कि मनरेगा जैसे राष्ट्रीय कार्यक्रम के लागू हो जाने पर अब पंचायती राज संस्थाओं के काम एकदम से बढ़ गए हैं।
वीरभद्र सिंह का मानना है कि पंचायतीराज संस्थाओं के चुनाव किसी भी राजनीतिक पार्टी के लिए अहम चुनाव होता है, लेकिन वह इस बात के हिमायती हैं कि पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव पार्टी सिंबल पर नहीं लड़े जाने चाहिए। उनका कहना है कि पंचायती स्तर पर प्रदेश में कांग्रेस बेहद मजबूत स्थिति है लेकिन इन चुनावों के लिए कांग्रेस अगर पूरी योजना बनाकर चुनाव लड़े तो सत्ता के सेमीफाइल में भाजपा की छुट्टी तय है। उनका कहना है कि होता यह आया है कि कांग्रेस के अपने ही कार्यकर्ता और पदाधिकारी आमने सामने आ जाते है, नतीजतन कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ता है।